Shodashi No Further a Mystery

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The mantra seeks the blessings of Tripura Sundari to manifest and fulfill all desired results and aspirations. It is actually believed to invoke the merged energies of Mahalakshmi, Lakshmi, and Kali, with the final word goal of attaining abundance, prosperity, and fulfillment in all facets of lifetime.

The Sri Yantra, her geometric representation, is a complex image of the universe as well as the divine feminine Power. It is made up of nine interlocking triangles that radiate out from the central place, the bindu, which symbolizes the origin of generation along with the Goddess herself.

चक्रेशी च पुराम्बिका विजयते यत्र त्रिकोणे मुदा

वन्दे तामहमक्षय्यां क्षकाराक्षररूपिणीम् ।

The exercise of Shodashi Sadhana is often a journey towards both equally satisfaction and moksha, reflecting the dual nature of her blessings.

ह्रीं‍मन्त्राराध्यदेवीं श्रुतिशतशिखरैर्मृग्यमाणां मृगाक्षीम् ।

ഓം ശ്രീം ഹ്രീം ക്ലീം ഐം സൗ: ഓം ഹ്രീം ശ്രീം ക എ ഐ ല ഹ്രീം ഹ സ ക ഹ ല ഹ്രീം സ ക ല ഹ്രീം സൗ: ഐം ക്ലീം ഹ്രീം ശ്രീം 

देवस्नपन दक्षिण वेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

रविताक्ष्येन्दुकन्दर्पैः शङ्करानलविष्णुभिः ॥३॥

As being the camphor is burnt into the hearth instantaneously, the sins made by the individual develop into absolutely free from All those. There isn't any any as such require to search out an auspicious time to begin the accomplishment. But adhering to periods are mentioned to generally be Specific for this.

करोड़ों सूर्य ग्रहण तुल्य फलदायक अर्धोदय योग क्या है ?

सर्वोत्कृष्ट-वपुर्धराभिरभितो देवी समाभिर्जगत्

सा देवी कर्मबन्धं मम भवकरणं नाश्यत्वादिशक्तिः ॥३॥

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप here शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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